जनक उवाच - प्रकृत्या शून्यचित्तो यः प्रमादाद् भावभावनः। निद्रितो बोधित इव क्षीण- संस्मरणो हि सः॥१४- १॥
Change Bhasha
janaka uvāca - prakṛtyā śūnyacitto yaḥ pramādād bhāvabhāvanaḥ, nidrito bodhita iva kṣīṇa- saṃsmaraṇo hi saḥ
0
श्रीजनक कहते हैं - जो स्वभाव से ही विचारशून्य है और शायद ही कभी कोई इच्छा करता है वह पूर्व स्मृतियों से उसी प्रकार मुक्त हो जाता है जैसे कि नींद से जागा हुआ व्यक्ति अपने सपनों से ॥
Hindi Translation
…
Sri Janaka says - He, who is thoughtless by nature and desires only very rarely becomes mostly free from the past memories as if a person from a dream when he wakes up.
English Translation
…