प्रत्यक्षमप्यवस्तुत्वाद् विश्वं नास्त्यमले त्वयि। रज्जुसर्प इव व्यक्तं एवमेव लयं व्रज॥५- ३॥
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pratyakṣamapyavastutvād viśvaṃ nāstyamale tvayi, rajjusarpa iva vyaktaṃ evameva layaṃ vraja
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यद्यपि यह विश्व आँखों से दिखाई देता है परन्तु अवास्तविक है। विशुद्ध तुम में इस विश्व का अस्तित्व उसी प्रकार नहीं है जिस प्रकार कल्पित सर्प का रस्सी में। यह जानकर ब्रह्म से योग (एकरूपता) को प्राप्त करो ॥
Hindi Translation
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In spite of being visible from eyes, this world is unreal. You are immaculate and this world does not exist in you like an imagined snake in a rope. Know this and be one with Self.
English Translation
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