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रागद्वेषौ मनोधर्मौ न मनस्ते कदाचन। निर्विकल्पोऽसि बोधात्मा निर्विकारः सुखं चर॥१५- ५॥

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rāgadveṣau manodharmau na manaste kadācana, nirvikalpoʼsi bodhātmā nirvikāraḥ sukhaṃ cara

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राग(प्रियता) और द्वेष(अप्रियता) मन के धर्म हैं और तुम किसी भी प्रकार से मन नहीं हो, तुम कामनारहित हो, ज्ञान स्वरुप हो, विकार रहित हो, अतः सुखपूर्वक रहो ॥

Hindi Translation

Liking and disliking are traits of mind and you are not mind in any case. You are choice-less. You are of the form of knowledge and flawless so stay blissfully.

English Translation

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ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः