स्फुरतोऽनन्तरूपेण प्रकृतिं च न पश्यतः। क्व बन्धः क्व च वा मोक्षः क्व हर्षः क्व विषादिता॥१८- ७२॥
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sphuratoʼnantarūpeṇa prakṛtiṃ ca na paśyataḥ, kva bandhaḥ kva ca vā mokṣaḥ kva harṣaḥ kva viṣāditā
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जो अनंत रूप से स्वयं स्फुरित हो रहा है और प्रकृति की पृथक् सत्ता को नहीं देखता है, उसके लिए बंधन कहाँ, मोक्ष कहाँ, हर्ष कहाँ और विषाद कहाँ ॥
Hindi Translation
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For him who shines with the radiance of Infinity and is not subject to natural causality there is neither bondage, liberation, pleasure nor pain .
English Translation
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