तज्ज्ञस्य पुण्यपापाभ्यां स्पर्शो ह्यन्तर्न जायते। न ह्याकाशस्य धूमेन दृश्यमानापि सङ्गतिः॥४- ३॥
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tajjñasya puṇyapāpābhyāṃ sparśo hyantarna jāyate, na hyākāśasya dhūmena dṛśyamānāpi saṅgatiḥ
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उस (ब्रह्म) को जानने वाले के अन्तःकरण से पुण्य और पाप का स्पर्श नहीं होता है जिस प्रकार आकाश में दिखने वाले धुएँ से आकाश का संयोग नहीं होता है ॥
Hindi Translation
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He who has self-knowledge remains untouched by good and bad even internally, as the sky cannot be contaminated by the presence of smoke in it.
English Translation
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